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Naagrik Parabhav | Kumar Ambuj
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नागरिक पराभव | कुमार अम्बुजबहुत पहले से प्रारंभ करूँ तोउससे डरता हूँ जो अत्यंत विनम्र हैकोई भी घटना जिसे क्रोधित नहीं करतीबात-बात में ईश्वर को याद करता है जोबहुत डरता हूँ अति धार्मिक आदमी सेजो मारा जाएगा अगले दिन की बर्बरता मेंउसे प्यार करना चाहता हूँकक्षा तीन में पढ़ रही पड़ोस की बच्ची को नहीं पताआने वाले समाज की भयावहताउसे नहीं पता उसके कर्णफूलगिरवी रखे जा चुके हैं विश्व-बैंक मेंचिंतित करती है मुझे उसके हिस्से की दुनियाएक छोटा-सा लड़का आठ गिलास का छींका उठा करआस-पास के कार्यालयों में देता है चायसबके चाय पीने तक देखता है सादा आँखों सेसबका चाय पीनामैं एक नागरिक देखता हूँ उसे नागरिक की तरहधीरे-धीरे अनाथ होता हूँठीक करना चाहता हूँ एक-एक पुरज़ामगर हर बार खोजता हूँ एक बहानाहर बार पहले से ज़्यादा ठोस और पुख़्तामेरी निडरता को धीरे-धीरे चूस लेते हैं मेरे स्वार्थअब मैं छोटी-सी समस्या को भीएक डरे हुए नागरिक की तरह देखता हूँसबको ठीक करना मेरा काम नहीं सोचते हुएएक चुप नागरिक की तरह हर ग़लत काम में शरीक होता हूँअपने से छोटों को देखता हूँ हिक़ारत सेडिप्टी कलेक्टर को आता देख कुर्सी से खड़ा हो जाता हूँपड़ोसी के दुःख को मानता हूँ पड़ोस का दुःखऔर एक दिन पिता बीमार होते हैं तो सोचता हूँअब पिता की उमर हो गई हैअंत में मंच संचालन करता हूँउस आदमी के सम्मान समारोह का जो अत्यंत विनम्र हैचरण छूता हूँ जय-जयकार करता हूँ उसी कीजो अति धार्मिक हैऔर फिर एक बच्ची को देखता हूँप्लास्टिक की गुड़िया की तरहजैसे चाय बाँटते बहुत छोटे बच्चे कोनौकर की तरह।

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