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Daud | Ramdarash Mishra
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00:02:29
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दौड़ | रामदरश मिश्रवह आगे-आगे थामैं उसके पीछे-पीछेमेरे पीछे अनेक लोग थेहाँ, यह दौड़-प्रतिस्पर्धा थीलक्ष्य से कुछ ही दूर पहलेएकाएक उसकी चाल धीमी पड़ गयी और रुक गयामैं आगे निकल गयाजीत के गर्वीले सुख के उन्माद से मैं झूम उठा उसके हार-जन्य दुख की कल्पना सेमेरा सुख और भी उन्मत्त हो उठामूर्ख कहीं का मैं मन ही मन भुनभुनायाउन्माद की हँसी हँसता हआ मैं लौटा तो देखावह किसी गिरे हुए आदमी को उठा रहा थाऔर उसका चेहरा नहा रहा थासुख और शान्ति की अपूर्व दीप्ति सेधीरे-धीरे मुझे लगने लगा किवह लक्ष्य तो उसके चरणों में लोट रहा है।जिसके लिए मैं बेतहाशा दौड़ता हुआ गया थाऔर वह मुझसे पहले ही दौड़ जीत चुका है।

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