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Dukh | Madan Kashyap
Dukh | Madan Kashyap

Dukh | Madan Kashyap

00:01:28
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दुख | मदन कश्यप दुख इतना था उसके जीवन में कि प्यार में भी दुख ही थाउसकी आँखों में झाँका दुख तालाब के जल की तरह ठहरा हुआ थाउसे बाँहों में कसापीठ पर दुख दागने के निशान की तरह दिखाउसे चूमना चाहादुख होंठों पर पपड़ियों की तरह जमा थाउसे निर्वस्त्र करना चाहाउसने दुख पहन रखा था जिसे उतारना संभव नहीं था।

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