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Bachpan Ki Wah Nadi | Nasira Sharma
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Bachpan Ki Wah Nadi | Nasira Sharma

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बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा  बचपन की वह नदीजो बहती थी मेरी नसों मेंजाने कितनी बारउतारा है मैंने उसे अक्षरों मेंपढ़ने वाले करते हैं शिकायतयह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र हैअकसर आपकी कहानियों में?कैसे कहूँ कि यादों  का भी एक सच होता हैजो वर्तमान में कहीं नज़र नहीं आतावर्तमान का अतीत हो जाना भीसमय के बहने जैसा हैजैसे वह नदी बहती थी कभी पिघली चाँदी जैसीअभी अलसाई सी पड़ी रहती है तलहटी मेंशायद कल वह भी न होऔर ज़िक्र हो उसका सिंधु घाटी की तरह कोर्स की पुस्तक के किसी पन्ने परअतीत में बहती एक नदी की तरह।

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