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Daily Passenger | Arun Kamal
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डेली पैसेंजर | अरुण कमलमैंने उसे कुछ भी तो नहीं दियाइसे प्यार भी तो नहीं कहेंगेएक धुँधले-से स्टेशन पर वह हमारे डब्बे मेंचढ़ीऔर भीड़ में खड़ी रही कुछ देर सीकड़ पकड़ेपाँव बदलतीफिर मेरी ओर देखाऔर मैंने पाँव सीट से नीचे कर लिएऔर नीचे उतार दिया झोलाउसने कुछ कहा तो नहीं थावह आ गईऔर मेरी बग़ल में बैठ गईधीरे से पीठ तख़्ते से टिकाईऔर लंबी साँस लीट्रेन बहुत तेज़ चल रही थीआवाज़ से लगता थाट्रेन बहुत तेज़ चल रही थीझोंक रही थी हवा को खिड़कियों की राहबेलचे में भर-भरचेहरे परबाँहों परखुल रहा था रंध्र-रंध्रकि सहसा मेरे कंधे सेलग गयाउस युवती का माथालगता है बहुत थकी थीवह कामगार औरतकाम से वापस घर लौट रही थीएक डेली पैसेंजर।

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